सैयद सालार मसूद गाजी को लुटेरा बताते हुए संभल में हर साल लगने वाले मेले पर रोक लगा दी गई है। इधर बहराइच में उनकी दरगाह पर शादी की तैयारियां चल रही हैं। शादी पर भी हर साल बहराइच में बड़ा मजमा जुटता है।

संभल में सैयद सालार मसूद गाजी के नेजा (तीर) मेला की भले ही अनुमति नहीं मिली है और इस पर रोक लग गई है लेकिन बहराइच में स्थित उनके दरगाह पर शादी की तैयारी चल रही है। 15 अप्रैल से निमंत्रण पत्र पूरी दुनिया में फैले गाजी को मानने वालों को भेजने का प्लान बन रहा है। 15 मई से कार्यक्रम की शुरुआत होगी जो 15 जून तक चलेंगे। मुख्य कार्यक्रम 18 मई को होगा, जब बारात उठेगी। संभल में मंगलवार को मेले के लिए झंडा गाड़ने की तैयारी थी। इसे प्रशासन ने यह कहते हुए रोक दिया कि एक लुटेरे के नाम पर मेले का आयोजन नहीं होगा। जिस जगह पर झंडा गाड़ा जाना था, उस गड्ढे को भी प्रशासन ने मंगलवार को सीमेंट डालकर बंद करा दिया।
मजार के देखरेख विभाग के प्रमुख व कमेटी के सदस्य हाजी अजमत उल्लाह का कहना है कि इस दरगाह से गंगा-जमुनी तहजीब के फूल खिलते हैं। सैयद मसूद गाजी की रस्म-ए-बारात में 70 फीसदी से अधिक जायरीन हिन्दू और दूसरे धर्मों के होते हैं। शादी का निमंत्रण भी उसी हिसाब से दिया जाता है। यहां किसी तरह का भेदभाव नहीं है।
श्रावस्ती नरेश से युद्ध में गई थी जान
सैयद सालार मसूद अफगानिस्तान के गजनवी वंश के क्रूरतम शासकों में से एक महमूद गजनवी का भांजा और सेनापति था। उसका जन्म राजस्थान के अजमेर में 10 फरवरी 1014 ई को हुआ था। उसके पिता भी महमूद गजनवी के सेनापति थे। जिस तरह से महमूद गजनवी को सोमनाथ मंदिर पर हमला, लूटपाट और शिवलिंग खंडित करने के लिए जाना जाता है, उसी तर्ज पर सैयद सालार मसूद गाजी ने भी हिन्दुस्तान में हमले किए। साल 1033 ई में मसूद गाजी हमले करता हुए बहराइच पहुंचा तो उसका सामना श्रावस्ती के महाराजा सुहेलदेव राजभर से हुआ।
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श्रावस्ती नरेश ने अपने साथ 20 और राजाओं का गठबंधन बनाया, जिनकी संयुक्त सेना से जंग में 15 जून 1034 ई को मसूद गाजी मारा गया। मसूद गाजी को उसकी सेना ने बहराइच में ही दफना दिया था। उसकी कब्र एक किले के भीतर है, जिसे बाद में दिल्ली के शासकों ने दरगाह का रूप दे दिया था। मसूद गाजी की कब्र के चारों ओर उसके सिपाहियों की भी कब्रें हैं। फिरोज शाह तुगलक ने इन कब्रों को गंज ए शहीदां का रूप दिया था।
सैयद सालार मसूद गाजी की दो निशानियां
इस दरगाह में मसूद गाजी की दो निशानियां भी हैं। इनमें एक है गाजी का पैरहन यानी कुर्ता और दूसरा कुरआन-ए-मजीद जो लगभग एक हजार साल पुराना बताया जाता है।
अनारकली व चित्तौरा झील पर जाते हैं जायरीन
दरगाह से लगभग तीन किमी दूर अनारकली झील है। जिला मुख्यालय से लगभग आठ किमी दूर बहराइच-गोंडा हाईवे से चित्तौरा झील को संपर्क मार्ग गया है। इसी के पास हठीला स्थल है। इन दोनों स्थानों पर लोग जाते हैं।